गर्भावस्था में प्री-एक्लेमप्सिया (प्रसवाक्षेप रोग) से बचाव जरूरी

प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं को कई तरह की शारीरिक समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इनमें से कई दिक्कतों को प्राय सभी जानते हैं, वहीं कुछ ऐसी समस्याएं होती हैं जिनके बारे में बहुत कम जानकारी होती है। इन्हीं में से एक है प्री-एक्लेमप्सिया (प्रसवाक्षेप रोग) । डॉक्टरों के अनुसार, अपरा (प्लेसेंटा) के ठीक से काम न करने की स्थिति में प्री-एक्लेमप्सिया होता है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए जानलेवा भी हो सकता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि यह समस्या क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और कैसे इससे बचा जा सकता है।
क्या है प्री-एक्लेमप्सिया ? / About Preeclampsia In Hindi
प्रेग्नेंसी के दौरान जब गर्भवती में हाई ब्लड प्रेशर के साथ प्रोटीन यूरिया यानी पेशाब में 300 मिलीग्राम से अधिक प्रोटीन की मात्रा हो जाती है, तो इस अवस्था को प्री-एक्लेमप्सिया कहा जाता है। इस अवस्था में हाई बीपी की वजह से गर्भवती में रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे भ्रूण को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व और ऑक्सीजन नहीं मिल पाता। इससे उसका विकास प्रभावित होता है। यह समस्या आमतौर पर प्रेग्नेंसी का आधा चरण पार कर लेने के बाद होती है। प्रेग्नेंसी के 20 सप्ताह बाद इसके होने की आशंका सबसे अधिक होती है। एक रिसर्च के अनुसार, भारत में 9 से 11 प्रतिशत महिलाएं इससे प्रभावित होती हैं।
किन परिस्थितियों में हो सकता है प्री-एक्लेमप्सिया रोग? / What causes pre eclampsia? Hindi
गर्भवती में प्री-एक्लेमप्सिया होने के पीछे कई कारक हो सकते हैं। इसकी कोई एक वजह नहीं होती। आइए जानते हैं वो परिस्थितियां जिनमें इसके होने की आशंका ज्यादा रहती है।
- आप पहली बार गर्भवती हुई हों। गर्भवती होने से पहले आपका वजन बहुत अधिक हो और गर्भावस्था की शुरुआत में बॉडी मास इंडेक्स भी अधिक रहा हो।
- आपको प्रेग्नेंट होने से पहले या फिर पिछली गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या रही हो। आपको टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज हो।
- आपको पहले से गुर्दों का रोग हो। आपको कोई ऑटोइम्यून समस्या जैसे कि ल्यूपस हो।
- आप किशोरावस्था में हों या आपकी उम्र 35 वर्ष से ज्यादा हो।
- आपकी गर्भावस्थाओं में 10 साल या इससे अधिक का गैप हो। आपके गर्भ में जुड़वा या तीन शिशु हों।
- आप दान किए गए अंडे, डोनर इनसेमिनेशन और आईवीएफ के जरिये गर्भवती हुई हैं, तो इस स्थिति में भी आपको प्री-एक्लेमप्सिया होने की आशंका ज्यादा रहती है।
प्री-एक्लेमप्सिया रोग के क्या हैं लक्षण ? / Preeclampsia - Symptoms In Hindi
प्रसवाक्षेप रोग यानी प्री-एक्लेमप्सिया के कई लक्षण हैं। अगर समय रहते इनको पहचान कर इलाज शुरू किया जाए तो इससे आसानी से निपटा जा सकता है। आइए जानते हैं इसके लक्षणों के बारे में।
- सिर में बहुत तेज दर्द होना
- लगातार मिचली या उल्टी की समस्या
- हाई ब्लड प्रेशर
- पेशाब में प्रोटीन की मौजूदगी
- दृष्टि से जुड़ी समस्या जैसे धुंधला दिखना या आंखों के आगे कुछ चमकता सा दिखना
- बहुत अधिक एसिडिटी व सीने में जलन की समस्या
- पसलियों के नीचे तेज दर्द होना
- चेहरे, हाथों व पैरों में अचानक से सूजन आना
- सांस लेने में दिक्कत, ब्लड में प्लेटलेट्स कम हो जाना
प्री-एक्लेमप्सिया रोग से बचाव के क्या तरीके हैं ? / What are the treatments for preeclampsia In Hindi
प्री-एक्लेमप्सिया के इलाज के लिए सबसे बेहतर उपाय ये है कि आप डॉक्टर को फौरन दिखाएं और दी गई दवाओं का सेवन नियमित करें। पर शुरुआती चरणों में इससे बचने के लिए आप कुछ घरेलू उपाय भी कर सकती हैं। इन्हें अपनाने से आप इस समस्या से दूर रहेंगी। ये हैं कुछ उपाय।
- अपने आहार में अधिक से अधिक कैल्शियम लें। इसके लिए कैल्शियम युक्त आहार का सेवन खूब करें। कई शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि जिन महिलाओं में कैल्शियम की कमी होती है, उनके इस समस्या से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा रहती है।
- गर्भावस्था में शराब, तंबाकू व अन्य तरह की नशे की चीजों से दूर रहें। इस अवस्था में नशा करने से प्रसवाक्षेप रोग बढ़ने की आशंका ज्यादा रहती है। इसके अलावा कैफीन युक्त पेय पदार्थों का भी सेवन न करें।
- अगर आप खुद को प्री-एक्लेमप्सिया से खुद को दूर रखना चाहती हैं, तो जरूरी है कि बाहर का खाना न खाएं। अगर बाहर का खाना बहुत मजबूरी है, तो अधिक तेल वाला खाना न खाएं।
- अधिक से अधिक पानी पीना यूं तो सबके लिए फायदेमंद है, लेकिन आप प्री-एक्लेमप्सिया से पीड़ित हैं तो इस स्थिति में ज्यादा पानी पीना आपके लिए रामबाण जैसा होगा। दिन में कम से कम 7-9 गिलास पानी जरूर पीएं।
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से भी आप इस समस्या से निपट सकती हैं। आपको कौन से एक्सरसाइज करने चाहिएं, इसके बारे में एक बार अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
ध्यान रखें कि इस समयमें अपने शरीर को भरपूर आराम देना आपके व पेट में पल रहे बच्चे दोनों के लिए ही बहुत जरूरी है। ऐसे में आप दिन में अच्छे से आराम करें और रात को भी भरपूर नींद लें। इन तरीकों से भी आप खुद को इस समस्या से दूर रख सकती हैं।
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