बच्चो के साथ कैसे करें बर्ताव - एक लघु कहानी

Shweta Acharya Vyas के द्वारा बनाई गई संशोधित किया गया Nov 29, 2020

कभी कभी ऐसा हो जाता है कि हम समझ नहीं पाते हमारे बच्चों का स्वभाव कहीं ना कहीं हम पर ही निर्भर है।हम जैसा कर रहे हैं हम जैसा उनके सामने दिखा रहे वैसा ही वो सीख रहे हैं। कुछ दिन पहले की बात है। मेरी बहुत पुरानी सहेली,जो कि बहुत सालों से मुम्बई में है पर बिजी रूटीन के चलते हमें मिलने का समय ही नहीं मिला।
आखिर पिछले संडे को मिलना तय हुआ।वो, उसका बेटा और पति वाले थे। उसे चाइनीज़ बहुत पसंद है,वो भी परफेक्ट उसी स्टाइल में बना हुआ तो हमने "Mainland China" में टेबल बुक करवाने की सोची। इस बहाने बातों का समय भी बढ़ जाएगा और मेरा संडे भी काम से बच जाएगा। और फिर बाहर खाने का मौका भी मैं हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। उनका 12 बजे आना निर्धारित हुआ। लगभग 12:30 बजे तक वो लोग रेस्ट्रॉन्ट पहुंच गए थे। हम लोग एक दूसरे से मिल के बहुत खुश हुए साथ में हमारे पति भी । विहान को मैं साथ नहीं लायी थी क्योंकि वो उसकी मासी के यहां था। मस्ती मज़ाक की बातें,पुरानी यादों का सिलसिला शुरू हुआ ही था कि समर(मेरी सहेली का बेटा)एक टेबल से सोफे पर कूदने लगा। माता पिता एक दूसरे की तरफ देखकर हंसने लगे और बड़े गर्व से कहने लगे,"क्या करें... बड़ा बदमाश हो गया है आजकल?" जब वो चौथी बार टेबल से गिरने के बाद रोने लगा तो मेरी सहेली, शिवानी,ने उठकर उसे गोद मे लिया और नकली से डांटते हुए कहा," मैंने कहा था ना समर मस्ती मत करो!!"। तभी वेटर आर्डर लेने आया। तभी समर ने झप्पटे से वेटर के हाथ से पेन ले लिया और उसे कहा," ये तो मेरा पेन है!!!"। इस पर उसके माता पिता ने वेटर से माफ़ी मांगने केके बजाय मुस्कुराकर वेटर को दूसरा पेन ले आने को कहा।
मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई पर मेहमान थे तो कुछ कह नहीं सकी। वेटर के आर्डर लेकर आने तक समर लगभग 4 बार पूछ था कि खाना कब आएगा। शिवानी उसे बार बार चुप रहने को कह रही थी और साथ में रेस्ट्रॉन्ट की सर्विस कम अच्छी होने पर भी व्यंग्य कर रही थी। खाना सर्व होने से पहले समर वहां पड़े सारे सोया सॉस,केचप को टेबल पर गिरा चुका था और समर के पापा बड़े रौब से वेटर को बार बार टेबल साफ करने को कह रहे थे। आखिर खाना आ ही गया। जैसे ही वेटर ने प्लेट टेबल पर सर्व करने के लिए रखी ,समर ने सीधी सर्विंग ट्रे में से नूडल उठाया और टेबल कवर,वेटर का लैस, खुद के कपड़ों को खराब करता हुआ पूरा का पूरा ट्रे ज़मीन पर गिरा दिया। पूरा रेस्ट्रॉन्ट हमें अलग निगाह से देख रहा था। मैनेजर भाग कर हमारी टेबल पर आया और वेटर को डांटने लगा। मेरे कहने पर की उसकी कोई गलती नहीं है,उसने फिर भी माफ़ी मांगी |
सबसे विचित्र बात तो ये रही कि समर के माता पिता ने उसे एक शब्द भी कुछ नहीं कहा। और उल्टा वो वेटर में नुक्स निकालने लगे। बड़े भारी मन से मैंने दूसरा आर्डर दिया। खाना पूरा हुआ। हम लोग डिजर्ट लेकर नीचे उतरे और एक दूसरे को और कभी मिलने का वादा किया और एक फॉर्मल बाई के बाद वो के घर के लिए रवाना हो गए। औऱ मेरे मन में ये रिग्रेट छोड़ गये कि शायद ही कभी इस जगह वापस कभी आ पाऊँ। वो लोग तो गए लेकिन मेरे मन में बहुत सी बातें छोड़ गए।
1. समर के पहली बार टेबल से कूदने पर भी उसके माता पिता ने उसे अनुशासन में रहने को नहीं कहा। उसकी हरकत पर हंसकर उसे और बढ़ावा दिया। अगर हम अपने बच्चों को उनकी पहली गलती पर ही रोक देते हैं तो गलती के बड़े होने की सम्भावन अपने आप कम हो जाती है।
2. उनके बेटे की गलती होने के बावजूद होटल के बैरे को डांट दिया और कोसा। हम में इतना साहस होना चाहिये की हम बच्चों की गलती स्वीकार करके उन्हें दूसरों के सामने भी डांट सके।
3. बच्चों को कभी भी भूखा कहीं ना ले जाएं अगर टाइम ना मिले तो बिस्किट या कोई भी स्नैक्स के पर्स में रखें ताकि परेशान करने पर हम उन्हें एक बार शांत कर सकें।
4. हमसे या हमारे बच्चे की वजह से किसी को परेशानी हुई तो हमे उनसे क्षमा मांगने में शर्म नहीं महसूस करनी चाहिए। बच्चों को सीख देने का काम तो माँ पिता का ही होता है ना।हमें वो सीमा पता होनी ये की हमें कब बच्चे को रोकना है। चाहे वो डांट के ही हो। हमारे सीखये हुए उसूल उनके ओवर आल डेवलपमेंट में सहायक साबित होंगे। औऱ अगर हमारे बच्चे समर जैसे व्यवहार का उदाहरण पेश करते हैं तो बच्चों से पहले माता पिता के मैनर्स की व्याख्या की जाएगी । तो आप भी बच्चों को उनकी सीमा बताये और मैंनेरलेस होने से बचें।
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