वैक्सीनेशन के बाद क्या साइड इफेक्ट्स का होना जरूरी है ?

मेरे एक मित्र हैं और उन्होंने हाल ही में वैक्सीनेशन करवाया है, कॉल के दौरान वे बहुत ज्यादा चिंतित दिखे। जब मैंने उनसे वजह पूछा तो उन्होंने बताया कि वैक्सीनेशन तो मैंने करवा लिया लेकिन मुझे 1-2 दिन बीत जाने के बावजूद किसी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट महसूस नहीं किया यानि ना तो मुझे बुखार आया और ना ही बदन दर्द या अन्य किसी प्रकार की तकलीफ का अनुभव किया। मेरे मित्र इस बात को लेकर परेशान थे कि उनके जान-पहचान के सभी लोगों को वैक्सीनेशन के बाद साइट इफेक्ट हुआ लेकिन उनको क्यों नहीं? यहां सवाल बस मेरे उस दोस्त का ही नहीं बल्कि बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जिनके मन में इस बात को लेकर सवाल उठ रहे होंगे कि वैक्सीनेशन कराने के बाद साइड इफेक्ट का होना जरूरी है क्या या अगर साइड इफेक्ट नजर नहीं आया तो क्या ये चिंताजनक बात है? इस ब्लॉग में हम आपको इस विषय पर एक्सपर्ट्स की राय क्या है उसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
सबसे पहले जानिए क्या हो सकते हैं वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स
अगर आपने वैक्सीनेशन करवा लिया है तो आपको ये जरूर ध्यान होगा कि वैक्सीनेशन के दौरान वहां मौजूद स्वास्थ्य कर्मचारियों ने आपको कुछ संभावित साइड इफेक्ट्स के बारे में अवश्य जानकारी दी होगी। वैक्सीनेशन के कुछ घंटों के बाद वैक्सीन जिस जगह पर लगाई जाती है वहां पर दर्द महसूस हो सकता है। इसके अलावा शरीर में दर्द, थकान, सरदर्द, बुखार, या उल्टी जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं लेकिन इस बात को लेकर घबड़ाने या परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हम आपको बता दें कि अन्य वैक्सीन की तरह कोरोना वैक्सीन में भी साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं और ना ही कोई लंबे समय तक रहने वाला प्रभाव है।
वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट्स को लेकर क्या कहना है एक्सपर्ट्स का?
कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के बारे में एक्सपर्ट्स का स्पष्ट मानना है कि अगर वैक्सीनेशन के बाद किसी को साइड इफेक्ट्स नहीं महसूस हो रहे हैं तो इसका मतलब ये कतई नहीं कि वैक्सीन काम नहीं कर रही है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि साइड इफेक्ट्स का ना दिखना भी एक उतना ही सामान्य है जितना कि साइड इफेक्ट्स का दिखाई देना। इसका प्रमाण कोरोना वैक्सीन के ट्रायल के दौरान ही सामने आ गया था।
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फाइजर के द्वारा चलाई गई क्लीनिकल ट्रायल में साफ दिखाई दिया कि 50 प्रतिशत प्रतिभागियों में ट्रायल के दौरान साइड इफेक्ट नहीं दिखे थे।
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इस ट्रायल की खास बात यह थी कि 90 प्रतिशत प्रतिभागियों ने वायरस के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता हासिल कर ली थी. इसी तरह मोडर्ना वैक्सीन का भी कहा है कि आम साइड इफेक्ट्स दस में से एक ही व्यक्ति में दिख सकते हैं. इसके बाद भी वैक्सीन 95 प्रतिशत लोगों पर कारगर साबित हुई हैं.
वैक्सीनेशन के बाद कैसे मजबूत होता है इम्यून सिस्टम?
एक्सपर्ट्स की माने तो वैक्सीन लग जाने के बाद हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम वायरस के खिलाफ सुरक्षा विकसित तैयार करने की तैयारी में जुट जाता है।
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कोविड वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन नाम का एक वायरल प्रोटीन का उपयोग करती हैं, जो कोरोना वायरस की बाहरी परत पर होता है। वैक्सीन इस प्राकृतिक वायरल संक्रमण की नकल करता है और प्रतिरोध अनुक्रिया को सक्रिय करता है।
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प्रतिरोधी तंत्र इस स्पाइक प्रोटीन पर हमला करता है जिससे जलन और बीमारी के साथ दर्द की अनुभूति भी होती है. इसीलिए इस प्रतिरोध अनुक्रिया के कारण हमारे शरीर में सामान्य साइड इफेक्ट्स दिखाई देते हैं जो एक दो दिन में अपने आप खत्म हो जाता है। लंबे समय तक प्रतिरोध वैक्सीन के दूसरे डोज के बाद ही पैदा हो पाती है.
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इस लंबी अवधि की प्रतिरोधी क्षमता को अडाप्टिव इम्यूनिटी या अनुकूल प्रतिरोध क्षमता कहते हैं. इसमें जलन और उसके साथ किसी तरह के साइड इफेक्ट्स नहीं होते।
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कई बीमारियों की वजह से लोगों में साइड इफेक्टस नहीं दिखते या कम दिखते हैं, लकिन इसका मतलब यह नहीं कि वैक्सीन काम नहीं कर रही है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता का साइड इफेक्टस से कोई लेना देना नहीं है
एंटीबॉडी टेस्ट का महत्व
वैक्सीनेशन की दो डोज लग जाने के 15 से 20 दिनों के बाद आप एंटीबॉडी टेस्ट कराकर पता कर सकते हैं कि आपके शरीर में एंटीबॉडी कितनी बनी है।
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इस एंटीबॉडी टेस्ट के जरिए पता चलता है कि क्या आपके शरीर ने कोविड वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली हासिल कर ली है या नहीं।
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एक्सपर्ट का कहना है कि एंटीबॉडी टेस्ट के जरिए पता लगाया जा सकता है कि यह वायरस कितना खतरनाक है। इसके अलावा इस टेस्ट के जरिए यह भी देखा जा सकता है कि आपने जो वैक्सीन ली है] वह काफी है या इसे फिर से लगवाने की जरूरत है।
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एंटीबॉडी टेस्ट के जरिए एंटीबॉडी की मात्रा शरीर में कितनी है, यह भी पता लगाया जा सकता है।
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इस टेस्ट में आपका ब्लड लिया जाता है और लैब ले जाकर खून के नमूने की जांच की जाती है। इसमें देखा जाता है कि क्या आपके शरीर ने दोनों इम्यूनोग्लोबिन का निर्माण किया है या नहीं।
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आमतौर पर एक व्यक्ति का शरीर इम्यूनोग्लोबिन IgG का निर्माण ठीक होने के 14 दिन के बाद ही करता है। यह एंटीबॉडी लंबे शरीर में लंबे समय तक मौजूद रहती है।
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