सफल हुआ पिता का संघर्ष , बेटा बना अंडर 19 टीम इंडिया का कप्तान

बरगद की गहरी छांव जैसे,
मेरे पिता।
जिंदगी की धूप में,
घने साये जैसे मेरे पिता।।
धरा पर ईश्वर का रूप है,
चुभती धूप में सहलाते,
मेरे पिता।
शोभारानी गोयल की लिखी कविता 'मेरे पिता' की ये कुछ पंक्तियां आपके पापा, मेरे पापा के त्याग और समर्पण की कहानियों को बयां करते हैं। किसी भी परिवार की बुनियाद मां और पापा के मजबूत कंधों पर टिकी होती है। यही वजह है कि किसी बच्चे के जीवन में उसका पहले स्कूल घर और प्रथम गुरु पैरेंट्स को ही बताया जाता है। मां-पापा जो सिखाते हैं बच्चा वही तो सीखता है। बच्चे की सफलता में ही पैरेंट्स अपनी सफलता को देखते हैं। बच्चे के सपने को साकार करने में पैरेंट्स अपनी तरफ से पूरी ताकत झोंक देते हैं। आज हम आपको एक ऐसे पिता की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने बेटे के ख्वाब को साकार करने के लिए दूध बेचा, बस की ड्राइवरी की और आज उनकी इस तपस्या का फल मिला है क्योंकि इस पिता का बेटा आज वर्ल्डकप अंडर 19 में टीम इंडिया का कप्तान है। जी हां, हम बात कर रहे है अंडर 19 टीम इंडिया के कप्तान प्रियम गर्ग के पिता नरेश गर्ग के बारे में।
पिता के संर्घर्ष ने बेटे को बनाया सफल क्रिकेटर
अगले साल होने वाला अंडर 19 वर्ल्डकप के लिए जैसे ही टीम इंडिया का ऐलान हुआ तो पूरे मेरठ में खुशियों की लहर दौड़ गई। मेरठ के प्रियम गर्ग को टीम इंडिया का कप्तान बनाया गया है। प्रियम गर्ग की इस उपलब्धि से सबसे ज्यादा खुश अगर कोई व्यक्ति है तो वो हैं उसके पिता नरेश गर्ग। प्रियम जब 8 साल के थे तो उनकी क्रिकेट में दिलचस्पी बढ़ने लगी। प्रियम के प्रदर्शन को देखकर लोगों ने ट्रेनिंग के लिए किसी क्रिकेट एकेडमी में ज्वाइन कराने की सलाह दी। प्रियम का परिवार आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध नहीं था। अपने बेटे के अंदर छुपे टैलेंट को निखारने के लिए नरेश गर्ग ने ठान लिया कि उनको जो कुछ भी करना पड़ेगा वे करेंगे। क्रिकेट कोच संजय रस्तोगी के एकेडमी में प्रियम का दाखिला करवा दिया गया। प्रियम खुद बताते हैं कि उनके पापा दूध बेचते थे और प्रतिदिन रात में 10 रूपये इसलिए देते थे कि वे अगले दिन मेरठ जाकर क्रिकेट का अभ्यास कर सकें। कई बार नरेश गर्ग खुद साइकिल से प्रियम को लेकर मेरठ से 20 किमी दूर एकेडमी लेकर जाते थे। बेटे को कुछ कमी ना रह जाए इसके लिए उन्होंने स्कूल वैन चलाया।
वर्तमान में नरेश गर्ग स्वास्थ्य विभाग में ड्राईवर हैं। हालांकि अब उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है। रणजी मैचों में बेटे का सलेक्शन होने के बाद अब आमदनी में भी इजापा हुआ है। प्रियम गर्ग ने रणजी ट्रॉफी में खेलते हुए एक डबल सेंचुरी, दो शतक, और 5 हाफ सेंचुरी की मदद से कुल 867 रन बनाए थे। प्रियम अभी 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे हैं और वे पढ़ाई पर फोकस करने के साथ ही 7-8 घंटे क्रिकेट की प्रैक्टिस करते रहे हैं। नरेश गर्ग कहते हैं कि उनका बेटा अब देश के लिए खेलने जा रहा है और अब वे चाहते हैं कि बेटा वर्ल्ड कप जीत कर लाए।
अपने बच्चे को सफल बनाने के लिए क्या करें? / How to raise successful kids In Hindi
आपने नोटिस किया होगा कि हमारे आसपास के ही कुछ लोग हमेशा अभावों व संसाधनों की कमी का रोना रोते रहते हैं। प्रियम गर्ग के पिता नरेश गर्ग के सामने भी यही चुनौतियां थीं लेकिन उन्होंने इसका डटकर मुकाबला किया और विपरित परिस्थितियों में भी अपना कर्तव्य करने में विश्वास रखा।
- अपने बच्चे के अंदर छुपी हुई प्रतिभा को पहले पहचानिए और फिर उसको तराशने का काम करिए। जरूरी नहीं कि हर बच्चा पढ़ाई में ही बेहतर करे, अगर आपके बच्चे को खेल में अभिरूचि है या पेटिंग में, अभिनय में या अन्य किसी विधा में तो उसका उत्साहवर्धन करिए।
- सही समय पर उचित प्रशिक्षण- अगर आपके बच्चे को शुरुआती दिनों से ही उचित प्रशिक्षण मिल जाए तो वह कमाल करके दिखा सकता है। आप यह पता करें कि जिस क्षेत्र में आपके बच्चे की अभिरूचि है उसके लिए आपके आसपास में क्या कोई प्रशिक्षण संस्थान है? प्रियम गर्ग के गांव से 20 किमी दूर क्रिकेट एकेडमी था। ट्रेनिंग लेने के लिए प्रियम को प्रतिदिन 20 किमी आना-जाना करना पड़ता था। एक अच्छा गुरु-एक अच्छा प्रशिक्षक अगर मिल जाए तो फिर सफलता मिलनी लगभग तय है। यह पैरेंट्स का दायित्व बनता है कि वो अपने बच्चे के लिए अच्छा गुरु तलाशें। अगर सचिन तेंडुलकर को उनके बचपन में गुरु रमाकांत अचरेकर नहीं मिले होते तो शायद आज सचिन इतने महान क्रिकेटर नहीं बन पाते। विराट कोहली को ही देख लीजिए, उनके गुरु राजकुमार शर्मा ने उनको बचपन से ही प्रशिक्षण दिया और प्रियम गर्ग के गुरु संजय शर्मा भी प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
- बच्चे के आत्मविश्वास को कमजोर ना होने दें- आप अपने बच्चे को मुकाबला करने के लिए प्रेरित करिए। पढ़ाई में कम मार्क्स आने पर डांटने-फटकारने की बजाय उनको समझाएं कि वे इससे ज्यादा बेहतर कर सकते हैं, उनके अंदर क्षमता है बस उन्हें एकाग्रचित्त होकर मेहनत करने की आवश्यकता है। हार जाने का डर और किसी कीमत पर जीत जाने की मनोवृत्ति नकारात्मक है, इससे अच्छा यह रहेगा कि आप उनको अपना काम ईमानदारी से करने के लिए समझाएं। खेल को खेल भावना से खेला जाए ना कि हार-जीत की भावना से।
- अपनी आर्थिक स्थिति से जुड़ी बातें सकारात्मक तरीके से बच्चे के संग शेयर करें। आप इन दोनों ही स्थिति को समझें, पहली स्थिति ये है कि मेरे पापा बहुत पैसे कमाते हैं और दूसरी स्थिति ये है कि मेरे पापा बहुत गरीब हैं। इन दोनों ही स्थितियों से आपको अपने बच्चे को बचा कर रखना चाहिए। अगर आप आर्थिक रूप से समृद्ध हैं तो भी इसका एहसास आप अपने बच्चे को ना होने दें नहीं तो उसके अंदर नकारात्मक प्रवृत्ति पनप सकती है। वहीं दूसरी तरफ अगर कोई आर्थिक रूप से कोई कमजोर भी है तो वे अपने बच्चे के अंदर हीन भावना नहीं आने दें।
अगर आपके आसपास भी कुछ ऐसे उदाहरण हों जिसमें विपरित परिस्थितियों की परवाह किए बगैर किसी पैरेंट्स ने समाज के सामने मिसाल कायम किया है तो उनकी कहानी आप अन्य पैरेंट्स के संग जरूर साझा करें। कमेंट बॉक्स में आपके सुझावों का इंतजार रहेगा।
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