क्या बच्चों को हमेशा पीटना / डांटना सही हैं ?

Dr Paritosh Trivedi के द्वारा बनाई गई संशोधित किया गया Feb 26, 2020

स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ किसी बीमारी को ना होना नहीं होता हैं। शारीरक, मानसिक और सामाजिक तंदुरुस्ती को सही मायने में स्वास्थ्य कहा जाता हैं। आज हम यहाँ पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं। आजकल की भागदौड़ और तनाव की आधुनिक जीवनशैली जिसमे ज्यादातर घरो में पुरुष और महिला दोनों कामकाजी रहते हैं, शारीरिक रोग के साथ मानिसक रोग का प्रमाण भी बढ़ रहा हैं। यह प्रमाण सिर्फ बड़ो में ही नहीं बल्कि बच्चो में भी देखा जा रहा है। क्या आप बच्चों को डांट कर कही कोई गलती तो नहीं कर रहे। आइये जानें
समय और संयम की कमी के कारण अक्सर माता-पिता (Parents) अपने बच्चो की छोटी सी जिद पर उन्हें डांट या पिट देते हैं। उनकी परेशानी समझने की जगह अभिभावक उन्हें दोष देने लगते हैं। कुछ दिन पहले मुझे एक बेहद प्रेरनादायी संदेश अपने मोबाइल पर इस समस्या से जुड़ा मिला था।
आज मैं आपके साथ वह यहां साझा कर रहा हूँ ताकि यह पढ़कर इसका लाभ आप भी ले सके। इस सन्देश में एक शिक्षक अपने अनुभव बता रहे हैं।
एक बार Parents meeting के समय शिक्षकने एक सवाल पूछा था, ' जिन लोगो के बच्चे ज्यादा जिद्दी है वह अभिभावक (माता/पिता) अपना हाथ ऊपर करे। ' सभी अभिभावकों ने अपना हाथ ऊपर किया। फिर शिक्षक ने उनसे पूछा की,' किन लोगो के बच्चे ठीक से खाना नहीं खाते हैं ? ' फिर से सभी अभिभावकों ने अपने हाथ ऊपर किये।
फिर शिक्षक ने एक और सवाल किया, ' क्या यहाँ पर ऐसे कोई माता-पिता है जिन्होंने अभी तक कभी अपने बच्चों पर हाथ नहीं उठाया हैं ? ' इस प्रश्न पर एक भी हाथ ऊपर नहीं उठता है क्योंकि कभी न कभी ज्यादा परेशानी करने पर माता-पिता अपने बच्चों की पिटाई अवश्य करते हैं। फिर शिक्षक ने एक और सवाल किया, ' अच्छा ठीक हैं ! अब मुझे यह बताये की यहाँ पर बैठे अभिभावकों में से ऐसे कौन हैं जिन्हें अपने बच्चों की पिटाई करने से ख़ुशी होती हैं या अच्छा महसूस होता हैं ? ' फिर से इस प्रश्न पर किसी ने अपना हाथ ऊपर नहीं किया। कुछ अभिभावकों ने साहस कर जवाब दिया की असल में बच्चों की पिटाई करने पर उन्हें बेहद दुःख होता है, रोना आ जाता है और अपने बच्चों को खुश करने के लिए वह बाद में उनकी पसंद की मिठाई या खिलौने लाकर दे देते हैं।
बच्चों को पीटने के सवाल पर सिर्फ एक बार एक पिता ने हाथ ऊपर किया था और जवाब दिया था की, ' मैंने अभी तक अपने बच्चों को कभी मारा नही हैं। ' शिक्षक भी उनका जवाब सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें सामने बुलाकर पूछा की वह ऐसा नियंत्रण कैसे कर लेते है। उस पिता ने आगे आकर माइक अपने हाथ में लेकर जवाब दिया की, ' यह पिटाई विभाग मैंने अपने बीबी के हाथों में सौंप रखा हैं ! ' उनका जवाब सुन सब लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाए। एक और पिता सामने आकर बोले की, ' मैं अपने काम के सिलसिले में हमेशा बाहर रहता हूँ और इसीलिए मुझे बच्चो की पिटाई का मौका नहीं मिलता हैं। ' इनका जवाब सुन फिर से सभी लोग हँस पड़े।
इस ब्लॉग को जरूर पढ़ें : क्या आप बच्चों को हर छोटी गलती पर सजा देते है? जानिये इसके दुष्प्रभाव
बहुत कम अभिभावक ऐसे मिलते है जो कहते हैं की, ' हमें हमारे माता-पिता ने कभी नहीं पीटा और इसलिए हम भी कभी अपने बच्चों को नहीं पिटते हैं। ' कुछ कहते है की, ' हमने अपने बचपन मैं बहुत मार खाया है और इसलिए यह तय किया की अपने बच्चों के साथ कभी ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे। ' और कुछ का जवाब यह रहता है कि, ' आखिर बच्चों को पीटने की जरुरत ही क्या हैं ? हम उन्हें समझा भी सकते हैं। '
मुझे आपसे यही पूछना है की, ' जब आपको अपने बच्चों को पीटने के बाद बुरा लगता है, रोना आता हैं तो फिर क्यों उठाते है ऐसा कदम ? ' कुछ अभिभावक जवाब देते हैं की, ' हमें बच्चो पर गुस्सा आता है और अपना गुस्सा काबू न रख पाने के कारण हम उन पर हाथ उठाते हैं। ' ऐसा जवाब देकर अभिभावक भी बच्चों की तरह गलती ही करते हैं। क्या गलती होती है उनकी पता हैं ? जो गलती करने पर गुस्सा आने से हम बच्चों को पिटते है अगर वाही गलती घर के किसी बड़े दादा, दादी या मामा जैसो से हो जाये तो ? हम अपना गुस्सा काबू में रखते है !
एक बार शिक्षक ने अपने एक छात्र को स्टेज पर बुलाया और पूछा की, ' समझो की स्कुल छुटने के बाद तुम भागते हुए घर पर जाते हो और कमरे मैं रखा हुआ सब्जी की कटोरी तुम्हारे पैर से टकरा जाता हैं। तुम्हारी माँ ने अभी थोड़ी देर पहले घर साफ़ किया हुआ हैं और सब्जी की कटोरी गिरने से घर फिर से गंदा हो जाये तो ऐसे मैं तुम्हारी माँ क्या करेंगी ? ' छात्र ने थोड़ी देर सोचा और जवाब दिया, ' सबसे पहले तो माँ मेरी थोड़ी पिटाई करेंगी और फिर कहेंगी की, अँधा है ! दिखाई नहीं देता तुझे ? अभी घर साफ़ किया था मैंने ! ' छात्र का जवाब सुन सभी अभिभावक हंस पड़े। मैंने उससे कहा, ' अच्छा जवाब दिया। अब बताओ अगर तुम्हारी जगह अगर तुम्हारे पापा काम से आ रहे हो और उनसे वह सब्जी की कटोरी गिर जाये फिर तुम्हारी माँ क्या करेंगी ? ' छात्र ने तुरंत जवाब दिया, ' कुछ नहीं ! न तो माँ गुस्सा करेंगी न ही पिटाई करेंगी !! उल्टा माँ ही पिताजी से कहेंगी की गलती हो गयी मुझसे, मैंने यह कटोरी पहले ही रास्ते से उठा लेनी चाहिए। आप जाइये और अपना पैर साफ़ कर लीजिये। '
छात्र का सच्चा जवाब सुन अभिभावक फिरसे हँसे देते हैं।
हम सभी अभिभावकों का यह तय रहता है की गलती सिर्फ बच्चों की रहती है और उन्हें पीटना या सबक देना जरुरी होता हैं। हमें यह भी सोचना जरुरी है की उनके कोमल मन पर अधिक पिटाई या अपशब्द के कारण कितना गहरा असर हो सकता हैं। ऐसे बच्चों से जब बात करते है तो उनका जवाब रहता हैं की, 'आज पापा ने मुझे बहोत पीटा। मुझे आत्महत्या करने की इच्छा हो रही हैं। '
' आज माँ ने मुझे बेवजह पिटा। मेरी घर छोड़कर भाग जाने की इच्छा हो रही हैं। '
' आज मम्मी-पापा ने मुझे बहोत भला बुरा कहा। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं हैं। '
जब बच्चों को इतना बुरा लग सकता हैं तो हर वक्त पिटाई क्यों करनी चाहिए ? हमें लगता हैं की हम भी पिटाई खा कर बड़े हुए है तो इनके साथ भी यही सही हैं। आज कल के तनाव और भागदौड़ की जिंदगी मैं इतना समय भी माँ-बाप के पास नहीं है की बैठ कर अपने बच्चों को समझा सके। ऐसे में सिर्फ एक ही शॉर्टकट रहता है और वह हैं बच्चों की पिटाई। ऑफिस का, धंधे का, बड़ों का या फिर किसी अप्रिय घटना के गुस्से का शिकार घर पर बच्चों को होना पड़ता हैं। आप दिनभर बाहर रहते होंगे और 10 घंटे बाद जब घर पर आते है तो बच्चे आपके पास अगर कोई जिद लेकर आते तो उन्हें डांट देते हैं।
पढ़ें इस ब्लॉग को : सेक्स से सम्बंधित सवाल पूछने पर बच्चे को डांट कर चुप कराना क्यों है ग़लत
हमें अपने बच्चों को भी समझना होंगा, उन्हें भी समय देना होंगा। बच्चो के साथ buddy parenting करनी होंगी, उनका दोस्त बनने की कोशिश करनी होंगी। बच्चो के साथ बैठकर अगर उन्हें प्यार से उनकी भाषा में अगर कोई बात समझा दी जाये तो वह भी समझते हैं। आज कल के बच्चे पहले से ज्यादा समझदार और तेज हैं। अगर छोटी उम्र से ही सही समय, शिक्षा और अनुशासन दिया जाये तो आगे परेशानी नहीं होती हैं। अगर हम अभिभावक उनके लिए ही तो मेहनत करते है फिर अगर उनके लिए ही समय न निकाल पाए तो क्या फायदा ? बच्चों को प्यार से समझाए, थोड़ी मेहनत और वक्त लग सकता है पर वे अवश्य हमारी बात मान लेते हैं। उन्हें पीटने से या उनको अपशब्द कहने से उन्हें और उनसे ज्यादा आपको दोनों को पीड़ा ही होनेवाली हैं। अपने खुद के अनुभव से कह सकता हूँ की बिना पिटाई किये हुए भी हम अपने बच्चो को समझा सकते हैं और उन्हें के साथ एक दोस्ताना रिश्ता कायम कर सकते हैं। जहाँ तक संभव हो शांति से बच्चो को समझाए और केवल बेहद ज्यादा जरुरत होने पर ही उन्हें डांटना चाहिए।
यह लेख डॉ पारितोष त्रिवेदी जी ने लिखा हैं l स्वास्थ्य से जुडी जानकारी सरल हिंदी भाषा में पढने के लिए और अपने सेहत से जुड़े प्रश्नों का जवाब पाने के लिए आप उनकी हिंदी हेल्थ वेबसाइट www.nirogikaya.com पर अवश्य विजिट करे
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| Sep 10, 2017
Mai bhi apni beti pe hath utha deti hu.. mai apne gusse ko bahut control krne ki kosis krti hu but last me pitai hi ho jati h... mai teacher hu nd mere husband b to mai hi baby ki education sambhalti hu nd 2nd baby 11month old hai to us ki b Care krni padti h... to isi wajah se kaam time me jyada ki kosis me ye sb ho jata h




| Mar 09, 2019
mai guess jab karte hu jab woh bilkul nahi study karta hai, school say aaney kay bad mobile tori dare kyonki tv bands kar rakha hai usmay bhi cricket dekhta hai ya cartoon, jyada cricket highlight dekhta hai, phir mobile band toh ghar mai he cricket khalta hai woh bhi room mai, bahut samjaya per nani manta. mainey chod diya, kyonki husband hi kheltey hai per study time mai tik kar nahi bedta, tab dante hu, aur nahi suney per marna padta hai. jab woh bedta hai.



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