कैसे जोड़े अध्यात्म कि धारा से अपने बच्चे को ?

Created by Parentune Support Updated on Dec 28, 2017

समाज में व्यक्ति दो चीजों से पहचाना जाता है | पहला ज्ञान और दूसरा उसका नैतिक व्यवहार | व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए यह दोनों ही अति आवश्यक है | अगर ज्ञान सफलता की चाबी है तो नैतिकता सफलता की सीढ़ी | एक के अभाव में दूसरें का पतन निश्चित है | नैतिकता के कारण ही विश्वास में दृढ़ता और समझ में प्रखरता आती है |
माता-पिता है ईश्वर का रुप-- दुनिया में अगर कोई वास्तव में ईश्वर रहित संस्कृति है तो वह भारत की संस्कृति है। यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां इस बात को लेकर कोई एक मान्यता नहीं है कि ईश्वर क्या है। अगर आप अपने पिता को ईश्वर की तरह देखने लगें, तो आप उनके सामने ही सिर नवा सकते हैं। अगर आपको अपनी मां में ईश्वर के दर्शन होते हैं, तो आप उसके सामने सिर झुका सकते हैं।माता – पिता को ही बच्चे का प्रथम गुरु भी माना जाता है | इसलिए बच्चे में संस्कार के बीज डालना सर्वप्रथम आपका कर्तव्य है | अपने बच्चे को बड़ों का आदर करना, माता – पिता के चरणस्पर्श करने कि शिक्षा दें।
बच्चे को नैतिकता का पाठ पढ़ाये-- बचपन से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने से उन्हें भले – बुरे, उचित – अनुचित का ज्ञान हो जाता है | वह समझने लगता है कि कौन सा व्यवहार सामाजिक है और कौन सा व्यवहार असामाजिक | किन व्यवहारों को करने से समाज में प्रतिष्ठा, प्रंशसा एवं लोकप्रियता मिलती है और किससे नहीं |
जिन बच्चों को बचपन से ही सच बोलना, सहयोग करना, दया करना, निष्पक्षता, आज्ञापालन, राष्ट्रीयता, समयबद्धता, सहिष्णुता, करुणा, आदि मानवीय गुणों को सिखाते है उन्हीं बच्चों में बाद में चलकर ये ही गुण पुष्पित, पल्लवित, व विकसित होकर चरित्र निर्माण में सहायक होते है |
अध्यात्म का एक अनूठा पहलू -ज्ञान योग
योग या परम प्रकृति को जानने के चार मुख्य मार्ग हैं – भक्ति, ज्ञान, क्रिया और कर्म। इनमें से ज्ञान को गहरे चिंतन के साथ जोड़कर देखा जाता है। बच्चो के मन, बुद्धि और तर्क करने की क्षमता के स्तर को एक ज्ञान योगी कि तरह बनाये। हर दिन और हर पल धीरे-धीरे उनहे बुद्धि को पैना करते हुए उस सीमा तक ले जाना चाहिए, जहां वह चाकू की धार की तरह पैनी हो जाए।वह आसपास होने वाली किसी भी चीज से प्रभावित नहीं हो और आपको सच और झूठ, असली और नकली का फर्क दिखा सके।
संस्कृति की परंपरागत विरासत का उपयोग करे-- अपने बच्चे को पुराण , शास्त्रों,भगवत गिता मे कही गयी अछ्छी बातो का ज्ञान दें उनके सोच के दायरे को बढाये क्युकि अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन-धारा है, विद्या है, हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है, ऋषियों, मनीषियों के चिंतन का निचोड़ है, उपनिषदों का दिव्य प्रसाद है। आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन-प्रलय की अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है अध्यात्म।

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