बच्चों से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जुड़ी 6 अहम बातें

Prasoon Pankaj के द्वारा बनाई गई संशोधित किया गया Feb 17, 2021

जानकारी के अभाव में हमे कभी पता नहीं चल पाता है की हमारे बच्चे किसी मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझ रहे है और जैसे जैसे वो बड़े होने लगते है हम उन्हें गलत समझने लगते है जैसे की आज कल बच्चों के बीच बिहेवियर इश्यू सबसे बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या बन गई है। ऐसी बहुत सी मनोवैज्ञानिक समस्याएं है जिन्हें अगर हम जान लें तो उससे हम अपने बच्चे को सही समय पर बचा सकते है |
बच्चों के अंदर मनोवैज्ञानिक समस्या के होने के 6 अहम संकेत/ Signs of Having Psychological Problems Inside Children in Hindi
अब जो हम आपको जिन 6 संकेतों के बारे में बताने जा रहे हैं उनके बारे में एक माता-पिता होने के नाते आपको जानना जरूरी है। अगर आप अपने बच्चे के अंदर इन संकेतों में से किसी एक को या फिर इससे ज्यादा नोटिस कर रहे हैं तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए और किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए।
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बच्चों का आक्रामक होना-- बच्चों के लिए आक्रामक व्यवहार उनकी इच्छापूर्ति का साधन होता है। उनमें धैर्य की कमी होती है। बच्चे को अपने आवेश पर नियंत्रण करना सिखाएं और उसे अपनी भावनाओं को शारीरिक माध्यम के स्थान पर शब्दों में अभिव्यक्त करने के लिए समझाएं। बच्चे से धैर्य से बात करें और उसके असामान्य व्यवहार के कारणों को जानने की कोशिश करें। हो सकता है वो ख़ुद को असुरक्षित अनुभव कर रहा हो, आपका प्यार-दुलार उसकी मानसिक पीड़ा को शांत करेगा।
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हर चीज के लिए ज़िद करना-- बच्चों को अपनी परिस्थिति से अवगत कराएं |उन्हें मॉरल वैल्यू के बारे में शुरू से समझाएं, क्योंकि इसी से अच्छे व्यक्तित्व की नींव बनती है , जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तब शौक़ और ख़ुशी के चलते हम उनकी हर सही-ग़लत मांग पूरी करते जाते है।. इसलिए थोड़े बड़े होने पर वे अपनी बात को मनवाने के लिए ज़िद का सहारा लेने लगते हैं।
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बात -बात पर झूठ बोलना -- बच्चे के टीचर्स से मिलकर उसके झूठ बोलने की आदत के बारे में बात करें । कहीं पैरेंट्स या टीचर्स की सख़्ती और मार के डर से तो बच्चा झूठ नहीं बोल रहा। बच्चे के झूठ बोलने पर सज़ा देने की बजाय प्यार से झूठ बोलने के कारणों के बारे में जानने की कोशिश करें। यदि आप बच्चों को खुला और स्वस्थ माहौल देंगे, तो बच्चे शायद ही झूठ बोलें।
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डरपोक और दब्बू होना-- अक्सर हम बचपन में बच्चों को भूत-अंधेरे आदि का डर दिखाते हैं। ये सभी बातें उनके अंतर्मन में कहीं न कहीं गहराई तक पैठ जाती हैं, वे नहीं जानते कि ऐसा करके जाने-अनजाने में वे अपने बच्चे का आत्मविश्वास कमज़ोर कर रहे हैं। ऐसा न करें, बेहतर होगा कि आप बच्चों के साथ एडवेंचर्स से भरपूर गेम्स खेलें। बहादुर और प्रेरणास्त्रोत महान लोगों के क़िस्से-कहानियां सुनाएं, यदि ज़रूरत हो, तो पर्सनैलिटी इम्प्रूवमेंट क्लास या फिर काउंसलर की मदद लेने से भी न हिचकें।
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पढाई से जुड़ी समस्याएं-- पढ़ाई को लेकर बच्चों को होने वाली समस्याओं, जैसे- तनाव, डर, असफलता की ग्लानि/आत्महत्या की प्रवृत्ति आदि को देखते हुए सरकारी शिक्षा नीति में उल्लेखनीय परिवर्तन किए गए लेकिन इसके बावजूद छह से बारह साल तक के बच्चों की पढ़ाई को लेकर कुछ मानसिक समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं, ख़ासतौर पर अपने पैरेंट्स और टीचर्स की अपेक्षाओं को पूरा करने की कशमकश।
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ऑटिज़्म बीमारी -- ऑटिज़्म बीमारी भी दिमाग़ी तंत्र से जुड़ी है इससे ग्रस्त बच्चे का संवेदी तंत्र अव्यवस्थित होता है, जिससे वो सामान्य बच्चों की तरह नहीं रहता।. इन बच्चों को भी विशेष देखभाल, प्यार और प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है। एसपर्जर, यह ऑटिज़्म का ही माइनर प्रॉब्लम है ,इसमें बच्चा आई कॉन्टेक्ट कम रखता है, कम बोलता व सुनता है, केवल हां-ना में ही अधिक बात करता है। कभी-कभी तो ज़िंदगीभर इसका पता ही नहीं चलता है, जिसकी वजह से पैरेंट्स कोई ट्रीटमेंट भी नहीं करवा पाते हैं लेकिन समय रहते मालूम होने पर इसका इलाज संभव है फिर भी इस समस्या को बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं।
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