बच्चों की गुस्से और जिद् की आदत सुधारने के तरीके

मैं एक 8 साल के बच्चे की माँ हूँ। जब मेरा बेटा छोटा था तो बहुत गुस्सैल था और कुछ चीजों को लेकर बहुत जिद् करता था।
मैं और मेरे पति, दोनों के कामकाजी होने की वजह से यह हमारे लिये बड़ी चिंता की बात थी पर फिर हमने इस बारे में आपस में बात की और उसकी जिद् और गुस्से से निपटने के लिये कुछ उपाय किये जो मैं आपको बताना चाहती हूँ-
1. इसके बाद वह जब भी गुस्सा होता था और मेरी तरफ इस उम्मीद से देखता था कि मुझे उसकी हरकत पर गुस्सा या मायूसी होगी (जो मैं अक्सर करती थी), मैंने एसा कुछ नहीं किया और माहौल बदलने के लिये कुछ पल तक शांति से उसकी ओर देखा।
मेरे ऐसा करने पर वह उलझन में पड़ गया और मुस्कुराने लगा पर वह अभी भी गुस्से में था। इसके बाद मैंने जोर-जोर से हंसना शुरू कर दिया और मेरे इस बर्ताव पर वह खुद भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया।
2. बच्चों को उनकी मनचाही चीज के न मिलने पर ही वे जिद् करते हैं, तो उन्हे सब्र करना सिखाने के लिये आप भी उनके साथ वही खेल खेलें। जब मेरे बेटे ने बोलना शुरू किया, सबसे पहले उसने 1 से 3 तक गिनती सीखी। एक बार मैंने उसे दो पैन दिये और उसे 3 पैन वापस करने के लिये कहा। उसने दो बार गिना और यह कह कर वे पैन वापस कर दिये कि उसके पास दो ही पैन हैं। इस बात पर मैंने जिद् पकड़ ली कि मुझे तीन पैन ही चाहिये। अब उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और फिर उसने धीरे से मुझे बताया कि वह तीसरा पैन नहीं दे सकता। यह हमारे पास उसे इस बात को समझाने का मौका था कि माता-पिता होने के नाते उसकी इच्छाओं को पूरा करने की हमारी एक सीमा है और हम उसे हर वो चीज नहीं दे सकते जो वह चाहता है पर उसे हर वो चीज मिलेगी जो उसके लिये जरूरी है।
3. अपने बेटे के साथ मैंने माँ-बेटे का खेल खेलना शुरू किया जिसमें वह मेरी माँ बनता था और मैं उसका जिद्दी बेटा बनती थी। फिर धीरे-धीरे मैं खेल के बीच किसी बात पर जिद् करने लगती थी जो हमारे बीच एक आम बात थी और मेरे ऐसा करने से अब वह यह अच्छे से समझने लगा था कि कभी-कभी किसी मामले को हल करना कितना कठिन होता है।
4. मैंने और मेरे पति ने साथ मिलकर उससे अपने आॅफिस की समस्याओं के बारे बात करना शुरू किया जिससे वह हमारे रोजमर्रा हालातों को समझ सके और अपनी राय दे- कि कैसे किसी खास मसले को एक नये और अलग ढंग से हल किया जाये।
5. बजाय यह बताने के कि उसे क्या करना है, हमने उससे पूछना शुरू किया कि हम क्या नया और अलग कर सकते हैं, जिससे उसे अपनी अहमियत को महसूस करने में मदद मिली।
मुझे लगता है कि इन सुझावों की मदद से बच्चों में गुस्सा, जिद् और बात-बात पर आँसू बहाने की आदतों से बड़ी आसानी और कुशलता से छुटकारा पाया जा सकता है। मेरा मानना है कि आज के बच्चे ज्यादा जानकार हैं, वे दोस्ताना हैं और समझदार भी हैं। उनकी परवरिश भी हमारे बचपन के दिनों की तुलना में ज्यादा अच्छी है और माता-पिता होना एक ऐसा सफर है जो सभी के साथ एक परिवार बनाकर करना होता है जहाँ बच्चों का किरदार काफी अहम् होता है।
तो आपके माता-पिता होने के इस पवित्र और शानदार सफर के लिये बधाई। यह मौका जीवन में केवल एक बार मिलता है जहाँ आपके सीखने के लिये बहुत कुछ होता है और जो बच्चे की अच्छी परवरिश के लिये आपको तैयार करता है।
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