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जकार्ता एशियाड में गोल्ड मेडल विजेता स्‍वप्‍ना बर्मन के संघर्ष की कहानी

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Prasoon Pankaj

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3 months ago

जकार्ता एशियाड में गोल्ड मेडल विजेता स्‍वप्‍ना बर्मन के संघर्ष की कहानी

इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में चल रहे एशियाड गेम्स में स्‍वप्‍ना बर्मन ने एथलेटिक्स (हेप्थाटन) में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रच दिया। इस खबर को सुनते ही देशभर में जश्न का माहौल बन गया, ठीक उसी समय पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक छोटे से मकान में रहने वाले लोग बहुत भावुक हो रहे थे। एक  महिला का तो रो-रोकर बुरा हाल हो रहा था, दरअसल ये खुशी के आंसू थे। आप जानना चाहेंगे कि ये महिला कौन है? ये महिला और कोई नहीं बल्कि स्वप्ना बर्मन की मां हैं। टीन के शेड वाले इस मकान में टीवी पर पूरा परिवार अपनी बेटी स्वप्ना बर्मन के जीवन की सबसे बड़ी प्रतियोगिता के एक-एक क्षण को अपनी आंखों में कैद कर रहे थे। जैसे ही स्वप्ना बर्मन की जीत का ऐलान हुआ, खुशी के मारे स्वप्ना की मां बाशोना फूट-फूटकर रोने लगी। स्वप्ना की इस जीत ने एक बार फिर से साबित कर दिखाया है कि अगर आपके अंदर हौसला और लगन है तो फिर गरीबी या अन्य कोई वजह आपकी सफलता को कतई नहीं रोक सकता है।

जानिए स्‍वप्‍ना बर्मन के संघर्ष की कहानी / Story Of The Struggle Of Swapna Burman In Hindi

स्वप्ना बर्मन के पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे लेकिन पिछले कुछ दिनों से बीमारी के चलते बिस्तर पर ही पड़े हैं। स्वप्ना की मां बाशोना बताती हैं कि उसने बहुत संघर्ष किया है, हम उसकी जरूरतों को कई बार पूरी नहीं कर पाते थे लेकिन उसने कभी इस बात को लेकर शिकायत नहीं किया। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन स्वप्ना के लिए सबसे बड़ी समस्या उसके लिए जूते साबित हो रहे थे। दरअसल स्वप्ना के दोनों पैरों में 6-6 उंगलियाां हैं और यही वजह है कि स्वप्ना के पैरों के हिसाब के जूते बाजार में आसानी से मिल नहीं पाते थे। और अगर मिल भी जाते तो फिर पांवों की अतिरिक्त चौड़ाई के चलते उनके जूते जल्दी फट भी जाते थे। स्वप्ना की मां बाशोना ने इसके बाद अपनी बेटी के लिए खास तरह के जूते मंगवाने के लिए स्थानीय लोगों से मदद मांगी। फिर उसके बाद स्वप्ना के लिए जूते ऑर्डर कर मंगवाया गया। 

 स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा बताते हैं कि आर्थिक तंगी के चलते उसको खेल से संबंधित महंगे उपकरण खरीदने में भी कठिनाइयों को सामना करना पड़ता था। यहां तक कि ट्रेनिंग का खर्च उठाना भी उनके परिवार के लिए मुश्किल था। स्वप्ना जब चौथी क्लास में पढ़ रही थी उस समय से ही उसके अंदर खेल को लेकर जुनून सवार था। स्वप्ना के कोच सुकांत सिन्हा का कहना है उसके अंदर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि वो बहुत जिद्दी है और जो वो ठान लेती है उसको करने में खुद को झोंक देती है। 

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स्वप्ना के सफलता की कहानी/ Success Story Of Swapna barman In Hindi

स्वप्ना के संघर्ष की कहानी के बारे में तो आप लोग जान चुके हैं अब जानिए कि कैसे स्वप्ना ने गोल्ड मेडल के सफर को तय किया।

  1. इस बार सभी स्पर्धाओं में कुल 6,026 अंकों के साथ स्वप्ना ने पहला स्थान जीत कर गोल्ड मेडल हासिल किया। स्वप्ना ने 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था। ऊंची कूद में 1003 अंकों के साथ पहले स्थान पर कब्जा जमाया। गोला फेंक में वह 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। 200 मीटर रेस में उन्होंने हीट-2 में 790 अंक लिए। 
     
  2. इस इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली स्वप्ना पहली भारतीय हैं
     
  3. 2 दिन तक कुल 7 स्पर्धाओं में स्वप्ना ने हिस्सा लिया
     
  4. प्रतियोगिता से पहले स्वप्ना के दांत में दर्द था, लेकिन स्वप्ना ने इस दर्द कि परवाह ना करते हुए प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर देश का नाम रोशन किया

अगर आपके बच्चे एथलेटिक्स में करियर बनाना चाहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दें/ What to do to make a career in athletics

अगर आपके बच्चे का रूझान एथलेटिक्स की तरफ है तो निश्चित रूप से आपको उस दिशा में अगला कदम उठाना चाहिए। दुनिया औऱ भारत के कई एथलेटिक्स ने अपने प्रदर्शन की बदौलत काफी नाम और शोहरत कमाया है। 

  1. सही उम्र पर प्रशिक्षण दिलाना शुरू करें: स्पोर्ट्स एकेडमी अलग-अलग एज ग्रुप में बच्चों का एडमिशन लेती है जैसे कि 5-8 साल, 9 से 14 साल और 15 साल या उससे ऊपर के बच्चे। एडमिशन के समय एकेडमी के जज ये तय करते हैं बच्चे के अंदर किस तरह के खेल में ज्यादा अच्छा करने की क्षमता होती है और उसके हिसाब से उनको ट्रेनिंग दी जाती है।
     
  2. एकेडमी के इंफ्रास्ट्रक्चर का ध्यान दें- बच्चे का एडमिशन कराते समय उस एकेडमी के इंफ्रास्ट्रक्चर का खास ख्याल रखें। आपको देखना चाहिए कि वहां पर ट्रेनिंग के लिए किस तरह की सुविधाएं दी जाती हैं।
     
  3. कोच की अहम भूमिका- स्पोर्ट्स के क्षेत्र में अच्छा परफॉरमेंस करने में सबसे अधिक भूमिका कोच की होती है। कोच ही आपके बच्चे को गेम की सही टेक्निक और फिटनेस के बारे में सही तरीके से गाइड कर सकते हैं।
     
  4. पढाई के साथ सामंजस्य- जो बच्चे स्पोर्ट्स में रूचि रखते हैं उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पढ़ाई के साथ सामंजस्य बना कर रखना होता है। क्योंकि उनको पढाई के साथ-साथ खेल के लिए कई घंटों की कड़ी मशक्कत करनी पड़ती हैं। इसके अलावा उनको अपने फिटनेस का भी ध्यान रखना होता है लेकिन इस सबके बीच में पढ़ाई पर भी ध्यान देना होता है।
     
  5. घर में बनाए रखें सकारात्मक माहौल- आप अपने बच्चे को घर में सकारात्मक माहौल देने का प्रयास करें। बच्चे का हौसला बढ़ाते रहें और उसकी रूटीन को फॉलो करने में मदद करें। प्रैक्टिस और पढाई के बीच में वो समय पर संतुलित आहार ले सके इसके अलावा समय पर सो भी सके इसका भी ध्यान माता-पिता को ही रखना होगा।

 

स्वप्ना के संघर्ष की कहानी से हम सबको प्रेरणा मिली है और उम्मीद करता हूं कि आप अपने बच्चे के संग स्वप्ना की सक्सेस स्टोरी को जरूर साझा करेंगे। 

 

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