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[Mother's Day] माँ को समर्पित कुछ अज़ीम शेर मुनव्वर राना की कलम से

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[Mother's Day] माँ को समर्पित कुछ अज़ीम शेर मुनव्वर राना की कलम से

Published: 10/05/19

Updated: 11/05/19

मदर्स डे (Mother's Day) एक ऐसा दिन जिस दिन को सिर्फ और सिर्फ मां के लिए ही डेडिकेटेड किया गया है। मां के रिश्ते पर आधारित बहुत सारे गाने और कविताएं (Mother Lyrics & Songs) भी लिखी गई हैं। हां ये सच है कि मां के लिए सिर्फ एक दिन मुकर्रर नहीं हो सकता है। जब हमने इस धरती पर पहली बार आंख खोला था तो सामने मां को ही तो देखा था। हमने पहली सांस भी तो मां के ही गर्भ में ली थी। मां के दूध ने ही तो हमारे अंदर जीवन के संघर्ष से डटकर मुकाबला करने की ताकत दी। मां के ही हाथ से तो पहला निवाला खाया था। मैं इसलिए मैं हूं क्योंकि मेरे जीवन में मां है। माँ ऐसी ही होती है... कुछ शेरो-शायरी मुनव्वर राना की कलम से

मशहूर शायर मुनव्वर राना ने उर्दु में सबसे ज्यादा मां पर शेर लिखा है। तो पढ़िए, मां के मुक़द्दस रिश्ते पर सबसे अज़ीम शेर, मुनव्वर राना की कलम से...

चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है।
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है । 
 
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ।
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ  ।
  
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती।
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती। 
   
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया।
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया।
 
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है।
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है ।
   
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे।
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी ।
   
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना।
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।
   
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है।
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है ।  

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता।
मैं जब तक घर न लौटूं, मेरी माँ सज़दे में रहती है। 
   
मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है।
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है।

Source ~ मुनव्वर राना

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