बच्चे की पढ़ने-लिखने की आदत को सुधारने के असरदार तरीके

7 to 11 years

Sugandha Tiwari

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6 years ago

बच्चे की पढ़ने-लिखने की आदत को सुधारने के असरदार तरीके

अपने 8 साल के बच्चे से उम्मीद होती है कि वह पहाड़े, तारीख और शब्द-अर्थ याद करे, अपना काम समय पर करे, अपना स्कूल बैग लगाये और ठीक से पढ़ाई करने के साथ और बहुत कुछ करे। कई बार हम अपने शिशु से उम्मीद करते हैं और सोचते हैं कि वह खुद अपने रोजमर्रा की चीजों के हिसाब से ढ़ले और चीजों को संभालना और उनका सामना करना सीखे।

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कुछ बच्चे इसे खुद ही सीख लेते हैं जबकि दूसरों को यह सिखाना पड़ता है। यह आपके बच्चे के लिये कठिन समय होता है- इस समय वह जिन आदतों को अपनाता है, वह जीवनभर उसके साथ रहती हैं। तो सवाल ये है कि शुरूआत कहाँ से करें? शिशु के विद्यार्थी और एक इंसान होने के सफर में उसे देने के लिये यहाँ कुछ जांचे-परखे तरीके हैं, पर नियम केवल एक हैः बार-बार अभ्यास करने से ही महारत आती है।

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बच्चे के अंदर पढ़ने-लिखने की भावना को प्रबल बनाने के लिए ये तरीके आजमाएं / Methods to Strengthen The Sense of Reading & Writing in Hindi

क्या आपके बच्चे का भी मन पढ़ाई में नहीं लगता? अगर बच्चा अपने रोजाना के कामों से जी चुराये और इन्हें संभालने में उसे कठिनाई हो, तो एक माँ-बाप होते हुये असरदार ढंग अपने बच्चे की इस आदत को सुधारने और उसका हौसला बढ़ाने के लिये आप क्या करना चाहेंगे...

  1. पढ़ने की जगहः इससे पहले कि आपका शिशु पढ़ने के लिये बैठे, एक हौसला बढ़ाने वाला माहौल तैयार करें, यह उसे ध्यान और मन लगाने में मदद करता है। दूसरे कमरे में ऊंची आवाज में चलता हुआ टेलीविजन-बिल्कुल नहीं। जितना हो सके शिशु की पढ़ने की जगह एकदम शांत होनी चाहिये। इसके काम के लिये एक अलग जगह तय करें जो शांत तो हो पर उबाऊ नहीं। इस जगह को रोचक बनायें और अपने शिशु की उम्र के हिसाब से वहाँ कुछ तस्वीरें, हौसला बढ़ाने वाली कहावतें या चित्र चिपकायें। शिशु को पढ़ने वाली जगह के लिये कोई छोटा-मोटा उपहार जैसे पेंसिल स्टैण्ड या रबर/कटर रखने का छोटा डिब्बा या कुछ और उसे दें जिससे शिशु पढ़ने के लिये प्रेरित हो। [जरूर पढ़ें - ऐसा बनाएं बच्चे का स्टडी रूम]
     
  2. उथल-पुथल से बचें: रोजमर्रा के काम और पढ़ाई-लिखाई एक साथ चलने वाली चीजें हैं। जब आप शिशु को अपने राजमर्रा के कामों और चीजों को ठीक ढंग से संभालना सिखाते हैं तो इसका असर उसकी पढ़ाई-लिखाई में भी दिखता है। अपने शिशु को उसकी आलमारी, दराजें, उसकी पढ़ने की टेबल, किताबें और सीडी वगैरह को ठीक से रखना समझायें। कुछ चीजों पर कोई समझौता ना करें जैसे पढ़ने वाली टेबल पर खाना-पीना नहीं चलेगा। शिशु को रंगीन, चिपकने वाले नोट बनाने के लिये कहें जो किसी बात को याद दिलाने के काम आते हैं जैसे ‘मुझे साफ रखें’ पढ़ाई-लिखाई की टेबल पर और ‘भर जाने पर मुझे खाली करें’ कचरे के डिब्बे पर या ऐसा ही कुछ और।
     
  3. समय का ध्यान रखें: समय के हिसाब से चलना एक बड़ी खूबी होती है और इसका हर रोज, हर घंटे और हर मिनट अभ्यास करना चाहिये। स्कूल डायरी की तरह समय के मुताबिक करने वाले कामों को एक कागज पर लिख कर, जिसे हमेशा देखा-पढ़ा जा सके, शिशु (10 से 13 की उम्र वाले) के मन में अच्छे से बिठाया जा सकता है। पढ़ने और मौज-मस्ती के समय में संतुलन रखने के लियेे कब-क्या करने वाले कामों को कागज पर लिख कर इसे शिशु के कमरे में एक ध्यान खींचने वाली जगह पर चिपकायें जहाँ इसे आसानी से देखा जा सके। अगर बच्चा इन लिखी बातों का उसी तरह और समय से पालन करे तो उसे ईनाम दें लेकिन कभी-कभार उसे कुछ छूट भी दें।
     
  4. अच्छी योजना बनायें: शुरू से ही शिशु को समय से कामों को करने वाली सूची बनाकर इसके इस्तेमाल करने के लिये उसका हौसला बढ़ायें। इस सूची में उसे रोज मिलने वाले कामों को हर विषय के हिसाब से लिखने दें और जब यह पूरा हो जाये तो उस पर निशान लगायें। आपको मंहगी और पेचीदा सूची का इस्तेमाल नहीं करना है, बल्कि यह ध्यान खींचने वाला और आसान होना चाहिये। इसके लिये आप किताबों की दुकान पर पता करें।
     
  5. फ्लैश/क्यू कार्डः हर काम के लिये रंगीन और अलग-अलग फ्लैश/क्यू कार्ड का इस्तेमाल करें। इन पर जरूरी और याद रखने वाली बातें, तारीखें, घटनायें, जरूरी शब्दों या कुछ और लिखने के लिये अपने शिशु की मदद करें।

 

इन तरकीबों पर काम करते समय इस बात का पता लगायें कि इनमें से कौनी सी बात काम आ रही है और कौन सी नहीं-और उसी हिसाब से इसमें बदलाव करें। कुछ तरकीबें दूसरी तरकीबों से ज्यादा बेहतर काम करती हैं। रचनाशील बनें और सुधारों को जगह दें और सबसे जरूरी बात अपने शिशु को इसके लिये हर कदम पर शामिल करें। उसे अपने पसंदीदा चुनाव और फैसले लेने की छूट दें, यह उसके अंदर भरोसा पैदा करेगा। 

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